गुणत्रय विभाग योग (त्रिगुण)
सदियों से इंसान की खोज रही है, खुद को जानने की, खुद को समझने की, खुद को खोजने की सुख व शान्ति में फर्क करने की, इंसान इस खोज में बाईबिल की तरफ बढा, कभी कुरान की तरफ बढा, कभी गुरूग्रन्थ साहिब की ओर बढा, लेकिन सभी जगह एक सामान्य बात रही कि खुद को कैसे जाने….मुझे लगता है इस आध्यात्मिक यात्रा में यदि कोई हमारी मदद कर सकता है तो वह है श्रीमद् भगवद् गीता, जो सभी ग्रन्थों को समेटे हुए है। इसे समझना बहुत आवश्यक है अगर आप खोजी हैं, आप स्वयं को जानना चाहते हैं।
आज हम जिस अध्याय की चर्चा करेंगे उसका नाम है ’’गुणत्रय विभाग योग’’ जिसमें त्रिगुणों की व्याख्या की है, गुणातीत क्या है उसकी व्याख्या की है। कभी-कभी हम सोचते हैं कि श्रीमद् भगवद् गीता एक आध्यात्मिक ग्रंथ है। इसमें सभी प्रकार के विज्ञान समाहित हैं….इसमें बायोलॉजी भी है, इसमें फिजिक्स भी है। इसमें आयुर्वेद भी है और ऐलोपेथी भी है। भला कैसे……
जो जड तत्व है वह बायोलॉजी ही तो है एवं जो चेतन तत्व है वह फिजिक्स है अर्थात् पूरा शरीर, मन व बुद्धि का गहरा संबंध है। इसी तरह पूरा आयुर्वेद तीन चीजों पर आधारित है, इन्हे त्रिदोष कहा जाता है। इसी तरह पूरा आयुर्वेद तीन चीजों पर आधारित है, इन्हे त्रिदोष कहा जाता है। अगर देखा जाए तो ये त्रिदोष इन तीनों से ही तो बने हैं त्रिगुण एवं त्रिदोष में कितना गहरा संबंध है, ’वात’, ’पित्त’ एवं ’कफ’ की बात हमारा आयुर्वेद करता है। 300 साल पहले सारा इलाज आयुर्वेद द्वारा ही किया जाता था। जब वात बढता है तब सतोगुण बढता है, जब पित्त बढता है तो तब रजोगुण बढता है एवं जब कफ बढता है तब तमोगुण बढता है। पूरा आयुर्वेद का आधार श्रीमद् भगवद् गीता का ज्ञान है।
इसलिए यह बहुत ही अद्भुत है। इस अध्याय को सात बातों में विभक्त कर सकते हैं। पहला है परम ज्ञान क्या है? प्रकृति के गुण क्या हैं? त्रिगुण क्या है? त्रिगुण मृत्यु और पुनर्जन्म में क्या संबंध है? गुणातीत व्यक्ति कौन है एवं उसके लक्षण क्या हैं? गुणातीत बनने की विधि क्या है?
सबसे पहलें श्रीकृष्ण परम ज्ञान के लिए कहते हैं कि हे अर्जुन! यह सम्पूर्ण प्रकृति माता के समान है जहाँ गर्भधारण किए जाते हैं और मैं पिता के समान हूँ जहाँ यह स्थापित किये जाते हैं एवं मेरे ही कारण समस्त ’भूतों’ अर्थात् समस्त जीवों का जन्म एवं मरण होता है इसे ही परम ज्ञान समझ। वास्तव में हम देखें तो यह पूर्ण ब्रह्माण्ड जड एवं चेतन से मिलकर ही तो बना है। जड, यह प्रकृति है तथा ’चेतन’ ईश्वर है।
श्रीकृष्ण अर्जुन से फिर कहते हैं कि हे अर्जुन! यह प्रकृति तीन गुणों से मिलकर बनती है सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण। जब व्यक्ति में सतोगुण की वृद्धि की वृद्धि होती है तो वह प्रकाशमय निर्मल एवं ज्ञानमय हो जाता है और वह ज्ञान के बंधन में बंधकर अभिमानी हो जाता है। लेकिन हे अर्जुन! जो व्यक्ति ’रजोगुण’ जो रागस्वरूप है में आसक्त हो जाता है वह रजोगुण के कारण ’कर्मफल’ के बंधन में बंध जाता है, तमोगुण से आलस्य व प्रमाद में फंस जाता है। यही प्रकृति के त्रिगुण हैं।
इन्हीं त्रिगुणों के कारण व्यक्ति बंधन में बंधता है। तो एक स्वाभाविक सा सवाल उठता है कि पहचाने कैसे कि किस व्यक्ति में कौनसा गुण अधिक है तो सबसे पहली बात है कि यदि किसी व्यक्ति में चैतन्यता बढे, उसका विवेक बढे एवं उसके Awareness का level बढ रहा हो तो समझ लो कि उस व्यक्ति में सतोगुण की वृद्धि हो रही है। परन्तु यदि कोई व्यक्ति लोभ या अशान्ति के कारण दुःख पा रहा है उसे विषय के प्रति बहुत ही आसक्ति बढ गई हैवो हर समय विषय का ही चिंतन करता है तो समझ लीजिए कि उसमें रजोगुण की वृद्धि हो रही है। लेकिन कुछ ये दोनों ही नहीं करते वे आलस्य में हैं वे हर समय प्रमाद में रहते हैं तो समझ लीजिए ऐसे व्यक्ति तमोगुण से ग्रसित हैं उनका तमोगुण बढ रहा है। जब हमें व्यक्तियों की पहचान हो जाती है तब हम उनसे काम लेना भी सीख जाते हैं। वो व्यक्ति जो Effective Management करना चाहता है। कुशल मैनेजर बनना चाहता है। जो व्यक्ति शिक्षक है जो Entrepreneur है उन्हे विभिन्न व्यक्तियों से काम करवाना होता है ऐसे में हम व्यक्तियों के स्वभाव को समझने की आवश्यकता होती है, जब हम उसके स्वभाव को समझ जाते हैं तब हम उनसे कार्य कराना भी सीख जाते हैं। और यह बहुत ही अद्भुत Management है। आज का आधुनिक विज्ञान पुनर्जन्म को नहीं मानता, आज भी विज्ञान केवल उन्हीं बातों को मानता है जिन्हे देखा जा सकता है। जिन चीजों को नहीं देखा जा सकता उन्हे विज्ञान नहीं मानता, लेकिन विज्ञान की एक नई शाखा तैयार हुई है जिसे Quantum Physics कहते हैं। इसमें बहुत ही सूक्ष्म व गहन अध्ययन किया जा रहा है। हम आपको बताना चाहेंगे कि सत्वगुण का परिणाम ज्ञान है, रजोगुण का परिणाम दुःख है तथा तमोगुण का परिणाम ’अज्ञान’ है। ऐसी श्रीमद् भगवद् गीता में श्रीकृष्ण द्वारा कहा गया है। परन्तु इन तीनों गुणों का पुनर्जन्म से क्या संबंध है यह समझना आवश्यक है क्योंकि हम आगे देखने वाले व्यक्ति हैं हम आगे जानना चाहते हैं कि मृत्यु के बाद क्या?
इसका जवाब भी हमें श्रीमद् भगवद् गीता के माध्यम से मिलेगा इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि मृत्यु के समय यदि सत्वगुण बढ रहा है तो उस समय व्यक्ति को स्वर्गलोक प्राप्त होता है। परन्तु यदि मृत्यु के समय रजोगुण बढ रहे हैं तो उसे मनुष्यलोक प्राप्त होता है। उसे पुनः जन्म लेना होता है। परन्तु यदि मृत्यु के समय तमोगुण की वृद्धि हो रही हे तो उसे नीच योनि में जन्म लेना होता है। वह पशु-पक्षी, कीट कुछ भी हो सकता है। कभी-कभी हमारा मन इसे स्वीकार नहीं करता परन्तु हम विज्ञान की भाषा को समझते हैं, अगर हम वास्तव में विज्ञान को जानें तो विज्ञान का सबसे बडा नियम कारण एवं परिणाम का संबंध है कोई भी कार्य जब तक परिणाम तक ना पहुंचे व ह सफल नहीं होता अतः हमने आज जो भी कार्य किये हैं तो निश्चित मानिए उसका कुछ ना कुछ परिणाम अवश्य ही निकलेगा। इसके पश्चात् श्रीकृष्ण एक गुणातीत व्यक्ति, वह व्यक्ति जो मोक्ष को प्राप्त करता है, की व्याख्या करते हैं। आइए जानें कि ये गुणातीत होना क्या होता है?…….प्रश्न यह उठता है कि या तो व्यक्ति में क्या खास बात होनी चाहिए? श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! जो गुणातीत व्यक्ति है वह इन तीनों गुणों में
श्रीकृष्ण अर्जुन से फिर कहते हैं कि हे अर्जुन! यह प्रकृति तीन गुणों से मिलकर बनती है सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण। जब व्यक्ति में सतोगुण की वृद्धि की वृद्धि होती है तो वह प्रकाशमय निर्मल एवं ज्ञानमय हो जाता है और वह ज्ञान के बंधन में बंधकर अभिमानी हो जाता है। लेकिन हे अर्जुन! जो व्यक्ति ’रजोगुण’ जो रागस्वरूप है में आसक्त हो जाता है वह रजोगुण के कारण ’कर्मफल’ के बंधन में बंध जाता है, तमोगुण से आलस्य व प्रमाद में फंस जाता है। यही प्रकृति के त्रिगुण हैं।
इन्हीं त्रिगुणों के कारण व्यक्ति बंधन में बंधता है। तो एक स्वाभाविक सा सवाल उठता है कि पहचाने कैसे कि किस व्यक्ति में कौनसा गुण अधिक है तो सबसे पहली बात है कि यदि किसी व्यक्ति में चैतन्यता बढे, उसका विवेक बढे एवं उसके ।ूंतमदमेे का समअमस बढ रहा हो तो समझ लो कि उस व्यक्ति में सतोगुण की वृद्धि हो रही है। परन्तु यदि कोई व्यक्ति लोभ या अशान्ति के कारण दुःख पा रहा है उसे विषय के प्रति बहुत ही आसक्ति बढ गई हैवो हर समय विषय का ही चिंतन करता है तो समझ लीजिए कि उसमें रजोगुण की वृद्धि हो रही है। लेकिन कुछ ये दोनों ही नहीं करते वे आलस्य में हैं वे हर समय प्रमाद में रहते हैं तो समझ लीजिए ऐसे व्यक्ति तमोगुण से ग्रसित हैं उनका तमोगुण बढ रहा है। जब हमें व्यक्तियों की पहचान हो जाती है तब हम उनसे काम लेना भी सीख जाते हैं। वो व्यक्ति जो म्ििमबजपअम डंदंहमउमदज करना चाहता है। कुशल मैनेजर बनना चाहता है। जो व्यक्ति शिक्षक है जो म्दजतमचतमदमनत है उन्हे विभिन्न व्यक्तियों से काम करवाना होता है ऐसे में हम व्यक्तियों के स्वभाव को समझने की आवश्यकता होती है, जब हम उसके स्वभाव को समझ जाते हैं तब हम उनसे कार्य कराना भी सीख जाते हैं। और यह बहुत ही अद्भुत डंदंहमउमदज है। आज का आधुनिक विज्ञान पुनर्जन्म को नहीं मानता, आज भी विज्ञान केवल उन्हीं बातों को मानता है जिन्हे देखा जा सकता है। जिन चीजों को नहीं देखा जा सकता उन्हे विज्ञान नहीं मानता, लेकिन विज्ञान की एक नई शाखा तैयार हुई है जिसे फनंदजनउ च्ीलेपबे कहते हैं। इसमें बहुत ही सूक्ष्म व गहन अध्ययन किया जा रहा है। हम आपको बताना चाहेंगे कि सत्वगुण का परिणाम ज्ञान है, रजोगुण का परिणाम दुःख है तथा तमोगुण का परिणाम ’अज्ञान’ है। ऐसी श्रीमद् भगवद् गीता में श्रीकृष्ण द्वारा कहा गया है। परन्तु इन तीनों गुणों का पुनर्जन्म से क्या संबंध है यह समझना आवश्यक है क्यांेकि हम आगे देखने वाले व्यक्ति हैं हम आगे जानना चाहते हैं कि मृत्यु के बाद क्या?
इसका जवाब भी हमें श्रीमद् भगवद् गीता के माध्यम से मिलेगा इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि मृत्यु के समय यदि सत्वगुण बढ रहा है तो उस समय व्यक्ति को स्वर्गलोक प्राप्त होता है। परन्तु यदि मृत्यु के समय रजोगुण बढ रहे हैं तो उसे मनुष्यलोक प्राप्त होता है। उसे पुनः जन्म लेना होता है। परन्तु यदि मृत्यु के समय तमोगुण की वृद्धि हो रही हे तो उसे नीच योनि में जन्म लेना होता है। वह पशु-पक्षी, कीट कुछ भी हो सकता है। कभी-कभी हमारा मन इसे स्वीकार नहीं करता परन्तु हम विज्ञान की भाषा को समझते हैं, अगर हम वास्तव में विज्ञान को जानें तो विज्ञान का सबसे बडा नियम कारण एवं परिणाम का संबंध है कोई भी कार्य जब तक परिणाम तक ना पहुंचे व ह सफल नहीं होता अतः हमने आज जो भी कार्य किये हैं तो निश्चित मानिए उसका कुछ ना कुछ परिणाम अवश्य ही निकलेगा। इसके पश्चात् श्रीकृष्ण एक गुणातीत व्यक्ति, वह व्यक्ति जो मोक्ष को प्राप्त करता है, की व्याख्या करते हैं। आइए जानें कि ये गुणातीत होना क्या होता है?…….प्रश्न यह उठता है कि या तो व्यक्ति में क्या खास बात होनी चाहिए? श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! जो गुणातीत व्यक्ति है वह इन तीनों गुणों में (सत्व, रज, तम) प्रवृत्त होने के बावजूद ना तो उन्हे अच्छा समझता है और ना ही बुरा समझता है। वह इन गुणों के साथ नहीं जुडता तथा बंधन में नहीं बंधता। कितना वैज्ञानिक जवाब है…..हमें गुणातीत व्यक्ति बनना होगा। आइये जानें कि गुणातीत के लक्षण क्या हैं? देखिए सर्वप्रथम गुणातीत व्यक्ति में ’’आत्मभाव’’ रहता है वह अभिमान से परे होता है वह ज्ञानी हो जाता है। सुख व दुःख को समान स्वीकार करता है। प्रिय-अप्रिय दोनों को समान समझता है। समभाव रखता है।
मित्र व शत्रु में भी भेद नहीं करता, मान-अपमान में भी भेद नहीं करता वह तो मिट्टी, पत्थर एवं सोने को भी समान ही समझता है वह पूरी तरह से मुक्त हो जाता है। उसे ये त्रिगुण किस प्रकार बाँध सकते हैं, वह मुक्त हो जाता है। उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है। आइये अब जानें कि आखिर यह गुणातीत व्यक्ति कैसे बनें? श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! जो व्यक्ति संसार का चिंतन छोडकर निरन्तर मुझे भजते हैं और इस कारण वे धीरे-धीरे ब्रह्ममय हो जाते है, और वे गुणातीत हो जाते हैं कितनी विशिष्ट बात है ये गुणातीत बनने के लिए बंधन मुक्त होना होगा। संसार मैं रहने के लिए, संसार से मुक्त होना पडेगा, कृष्णमय होना पडेगा, आप सभी गुणातीत व्यक्तित्व धारण करना चाह रहे होंगे…..
आइये इसे गहनता से समझें, गुणातीत व्यक्ति वह है जो संसार का चिंतन छोडकर सिर्फ श्रीकृष्ण को हृदय से भजता है, हृदय में धारण कर लेता है, उसका हृदय बार-बार नारायण हरि! का जाप करता है।
यह भजना तब संभव है जब हमारे Concept Clear हो जाते हैं, हमें ज्ञान प्राप्त हो जाता है, तो यह भजन लाना नहीं होता बल्कि स्वतः ही हृदय से फूट पडता है और यही आध्यात्मिक यात्रा है जो विशिष्ट है।
देखिए ना! किसी समय गुरूकुल हुआ करते थे और उस गुरूकुल में 25 वर्ष से कम उम्र में यह सब ज्ञान समझाया जाता था, हमैं आज बचपन से ही संसार सिखाया जाता है हमें बाहरी दुनिया दिखाई जाती है और हमारा मोह उस बाहरी दुनिया में बढ जाता है और हम स्वयं को जानना ही भूल जाते हैं। इसी कारण यह विशिष्ट ज्ञान विलुप्त सा हो गया हे कितना अच्छा हेा कि आज हमें बचपन में, युवावस्था से पूर्व एक बडा ज्ञान श्रीमद् भगवद् गीता के रूप में अपने बच्चों को दे ंतो यह पूरा समाज स्वस्थ हो जाएगा, यह पूरा समाज आनन्दमय हो जाएगा। मनुष्य योनि में बहुत कुछ किया जा सकता है यह 84 लाख योनियों के पश्चात् प्राप्त होती है, पर ये मनुष्य योनि खास क्या है जानेंगे अगले अध्याय में।
आपका हृदय से आभार।