
Learn Life Management from Uttar Ramayana Episode 3

एपिसोड-१२ (राम-रावण युद्ध)
इन दिनों हम रामायण धारावाहिक देख रहे हैं। अगर आप किसी कारण से यह नहीं
देख पाए हो तो बहुत ही संक्षिप्त शब्दों में आज के इस धारावाहिक से जीवन से
संबंधित महत्वपूर्ण दृश्य-सूत्र को संक्षिप्त में इस प्रकार समझा जा सकता है:
दृश्य संख्या 1: मित्रता जाति के आधार पर नहीं होती।
इस दृश्य में राम व रावण युद्ध भूमि में है। रावण अपनी प्रशंसा खुद ही कर रहा है।
इस पर राम कहते हैं दुनिया में 3 प्रकार के प्राणी पाये जाते हैं। पहले वो जो सिर्फ कहते
हैं, दूसरे जो कहते हैं और करते हैं एवं तीसरे जो सिर्फ करते हैं। राम कहते हैं हे रावण!
तुम सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें अधिक करते हो। इसके बाद जब रावण ने विभीषण पर दिव्य
शक्ति छोड़ी तब राम ने उसे अपने ऊपर ले लिया। इस पर भावुक होकर विभीषण जी
ने श्रीराम से कहा- मैं तो तुच्छ प्राणी हूं, राक्षस जाति का हूं। तब राम ने कहा मित्रता
जाति के आधार पर नहीं की जाती। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें बड़-बोले
स्वभाव से बचना चाहिए तथा एक सच्चे मित्र को मुसीबत में अपने मित्र का बेहिचक
साथ देना चाहिए। मित्र धर्म का जाति कोई आधार नहीं होती है।
दृश्य संख्या २ : जो होता है अच्छे के लिए होता है।
जब लक्ष्मण श्रीराम से यह कहते हैं कि सब कुछ मेरी वजह से हो रहा है। अगर उस
दिन मैं सीता माता को अकेला छोडक़र नहीं आता तो ऐसा नहीं होता। इस पर श्रीराम
कहते हैं जो होता है अच्छे के लिए होता है। अगर ऐसा नहीं होता तो हम ऋषि-मुनियों
को राक्षसों से मुक्त नहीं करा पाते तथा अधर्म का नाश नहीं हो पाता। इससे हमें यह
सीख मिलती है कि कभी-कभी जीवन में मुसीबतें आती हैं। ऐसी दशा में हम दु:खी
होकर ईश्वर को याद करने लगते हैं। समय व्यतीत होने के बाद हमें यह पता चलता है
कि उसी मुसीबत के कारण हमारे जीवन में उन्नति होती है। इसलिए हमेशा यह बात
हमारे ज़हन में रहनी चाहिए कि जो होता है अच्छे के लिए होता है।
दृश्य संख्या 3: अगर कर्म-धर्म के अनुसार काम करें तो ईश्वरीय शक्ति भी आपकी
मदद करती है।
इस दृश्य में इंद्र देवता बाकी सब देवताओं से राम व रावण के युद्ध के बारे में बात कर
रहे हैं। इंद्र जी कहते हैं बराबरी करने के लिए श्रीराम को भी रथ देना पड़ेगा। तब
ब्रह्माजी इंद्र को अपना रथ श्रीराम को देने की आज्ञा देते हैं। इससे साफ दिखता है कि
श्रीराम धर्म के साथ थे तो भगवान भी उनकी सहायता कर रहे थे। इससे हमें यह सीख
मिलती है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से
प्रकृति व ईश्वर उस कार्य को पूर्ण करने में मदद करते हैं।
दृश्य संख्या ४: अत्याचार तो अत्याचार ही रहता है चाहे कितनी ही वीरता से करें।
इस दृश्य में मंदोदरी रावण से कहती है कि सिर्फ एक ही दशा ऐसी है जिससे दोनों की
हार नहीं होगी और वह है ‘संधि’। इसके जवाब में रावण कहते हैं कभी-कभी लगता है
कि तुम रावण की पत्नी कहलाने योग्य नहीं हो। तुम्हारे अंदर वीरता की एक झलक
तक नहीं दिखती। तब मंदोदरी कहती है कि ‘वीरता’ शब्द ओढ़ लेने से आदर नहीं मिल
जाता है। यदि प्राणी धर्म के लिए लड़ता है तो वह दोनों ही दशा में वीर कहलाता है,
चाहे वह जीत जाये या मर जाये। परंतु जब अधर्म के लिए लड़ता है तब वह जीतने के
बावजूद भी अत्याचारी ही कहलाता है और यदि वह हार जाये तो लोग कहते हैं उसे
उसके कर्मों का दण्ड मिल गया। इससे हमें यह सीख मिलती है कि अत्याचार व वीरता
में भेद होता है। अत्याचार के परिणाम से उपयश मिलता है चाहे उसे कितनी ही वीरता
से क्यूं नहीं लड़ा गया हो।
एपिसोड-१1 इंद्रजीत (मेघनाथ) का वध
इन दिनों हम रामायण धारावाहिक देख रहे हैं। अगर आप किसी कारण से यह नहीं
देख पाए हो तो बहुत ही संक्षिप्त शब्दों में आज के इस धारावाहिक से जीवन से
संबंधित महत्वपूर्ण दृश्य-सूत्र को संक्षिप्त में इस प्रकार समझा जा सकता है:
दृश्य संख्या 1: पुत्र का धर्म पिता की आज्ञा का पालन करना है।
इस दृश्य में इन्द्रजीत रावण से कहते हैं कि राम-लक्ष्मण नर नहीं, अवतार हैं। वे
देवताओं के भी देवता हैं। जब रावण यह सब सुनते हैं तब उन्हें क्रोध आ जाता है तब
इन्द्रजीत कहते हैं कि पिताश्री! आपके अपमान नहीं कल्याण के लिए आया हूं। पुत्र का
एक ही धर्म होता है पिता के चरणों की सेवा करना। जो अपने पिता को अकेले छोडक़र
चला जाता है उन्हें देवता क्या भगवान भी स्थान नहीं देते। इससे हमें यह प्रेरणा
मिलती है कि मुसीबत के समय पुत्र को पिता का साथ देना चाहिए। इन्द्रजीत राम व
लक्ष्मण को युद्ध के दौरान समझ गया था कि वे दोनों सामान्य नर नहीं है। यदि अब
भी वे युद्ध करेंगे तो उसकी मृत्यु निश्चित है। बावजूद इसके वह अपने पिता के कहने
पर फिर से युद्ध भूमि में जाता है। युद्ध भूमि में वीरगति पाकर इतिहास में अमर हो
जाता है।
दृश्य संख्या २ : अहंकार विनाश का मूल है।
इस दृश्य में रावण को उसका अहंकार मानने नहीं दे रहा कि उसके पुत्र इन्द्रजीत की
मृत्यु हो गई है। रावण कहते हैं कि मृत्यु तो मेरी दासी है, वो इन्द्रजीत को कैसे मार
सकती है। तब रावण के नाना जी कहते हैं कि इन्द्रजीत को मृत्यु ने नहीं मारा, आपके
अहंकार ने मारा है। आपने बल व पराक्रम से काल को तो बांध दिया परंतु काम व
अहंकार को नहीं बांध सके। आप काम व अहंकार के कारण पग-पग पर हार रहे हैं।
इससे हमें यह सीख मिलती है कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु अहंकार है। काम, क्रोध,
लोभ व मोह की तो दिशा बदलकर सदुप्रयोग किया जा सकता है परंतु अहंकार का तो
कोई भी उपयोग नहीं है। इस प्रकार अहंकार ही अन्यु अवगुणों का मूल है व मनुष्य के
विनाश का कारण है।
दृश्य संख्या 3: प्रजा के हित के लिए अहंकार को त्याग देना चाहिए।
इस दृश्य में रावण के नाना माल्यवंत जी रावण से कहते हैं कि अब भी तुम्हारे पास
एक मौका है, लंका के सर्वनाश को रोकने का। सीता को राम के पास छोड़ आओ। तब
रावण कहता है कि अब छोड़ के आऊंगा तो मेरे मृत पुत्र पूछेंगे तो मैं क्या जवाब दूंगा?
प्रजा तो मुझे कायर समझेगी। तब माल्यवंत कहते हैं कि कभी-कभी अपनी प्रजा के
लिए अपना अहंकार त्याग देना अच्छी बात होती है। वरना इसका परिणाम सिर्फ
तुम्हारा नहीं पूरे राष्ट्र लंका का सर्वनाश हो सकता है। इससे हमें यह सीख मिलती है
कि एक राजा का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व प्रजा के प्रति होता है। अगर अपने अहंकार
को छोडऩे से प्रजा की जान-माल की हानि बच जाती है तो ऐसी दशा में अहंकार का
त्याग करना ही उचित होता है।
क्रमश:
एपिसोड-१२ (राम-रावण युद्ध)
इन दिनों हम रामायण धारावाहिक देख रहे हैं। अगर आप किसी कारण से यह नहीं
देख पाए हो तो बहुत ही संक्षिप्त शब्दों में आज के इस धारावाहिक से जीवन से
संबंधित महत्वपूर्ण दृश्य-सूत्र को संक्षिप्त में इस प्रकार समझा जा सकता है:
दृश्य संख्या 1: मित्रता जाति के आधार पर नहीं होती।
इस दृश्य में राम व रावण युद्ध भूमि में है। रावण अपनी प्रशंसा खुद ही कर रहा है।
इस पर राम कहते हैं दुनिया में 3 प्रकार के प्राणी पाये जाते हैं। पहले वो जो सिर्फ कहते
हैं, दूसरे जो कहते हैं और करते हैं एवं तीसरे जो सिर्फ करते हैं। राम कहते हैं हे रावण!
तुम सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें अधिक करते हो। इसके बाद जब रावण ने विभीषण पर दिव्य
शक्ति छोड़ी तब राम ने उसे अपने ऊपर ले लिया। इस पर भावुक होकर विभीषण जी
ने श्रीराम से कहा- मैं तो तुच्छ प्राणी हूं, राक्षस जाति का हूं। तब राम ने कहा मित्रता
जाति के आधार पर नहीं की जाती। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें बड़-बोले
स्वभाव से बचना चाहिए तथा एक सच्चे मित्र को मुसीबत में अपने मित्र का बेहिचक
साथ देना चाहिए। मित्र धर्म का जाति कोई आधार नहीं होती है।
दृश्य संख्या २ : जो होता है अच्छे के लिए होता है।
जब लक्ष्मण श्रीराम से यह कहते हैं कि सब कुछ मेरी वजह से हो रहा है। अगर उस
दिन मैं सीता माता को अकेला छोडक़र नहीं आता तो ऐसा नहीं होता। इस पर श्रीराम
कहते हैं जो होता है अच्छे के लिए होता है। अगर ऐसा नहीं होता तो हम ऋषि-मुनियों
को राक्षसों से मुक्त नहीं करा पाते तथा अधर्म का नाश नहीं हो पाता। इससे हमें यह
सीख मिलती है कि कभी-कभी जीवन में मुसीबतें आती हैं। ऐसी दशा में हम दु:खी
होकर ईश्वर को याद करने लगते हैं। समय व्यतीत होने के बाद हमें यह पता चलता है
कि उसी मुसीबत के कारण हमारे जीवन में उन्नति होती है। इसलिए हमेशा यह बात
हमारे ज़हन में रहनी चाहिए कि जो होता है अच्छे के लिए होता है।
दृश्य संख्या 3: अगर कर्म-धर्म के अनुसार काम करें तो ईश्वरीय शक्ति भी आपकी
मदद करती है।
इस दृश्य में इंद्र देवता बाकी सब देवताओं से राम व रावण के युद्ध के बारे में बात कर
रहे हैं। इंद्र जी कहते हैं बराबरी करने के लिए श्रीराम को भी रथ देना पड़ेगा। तब
ब्रह्माजी इंद्र को अपना रथ श्रीराम को देने की आज्ञा देते हैं। इससे साफ दिखता है कि
श्रीराम धर्म के साथ थे तो भगवान भी उनकी सहायता कर रहे थे। इससे हमें यह सीख
मिलती है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से
प्रकृति व ईश्वर उस कार्य को पूर्ण करने में मदद करते हैं।
दृश्य संख्या ४: अत्याचार तो अत्याचार ही रहता है चाहे कितनी ही वीरता से करें।
इस दृश्य में मंदोदरी रावण से कहती है कि सिर्फ एक ही दशा ऐसी है जिससे दोनों की
हार नहीं होगी और वह है ‘संधि’। इसके जवाब में रावण कहते हैं कभी-कभी लगता है
कि तुम रावण की पत्नी कहलाने योग्य नहीं हो। तुम्हारे अंदर वीरता की एक झलक
तक नहीं दिखती। तब मंदोदरी कहती है कि ‘वीरता’ शब्द ओढ़ लेने से आदर नहीं मिल
जाता है। यदि प्राणी धर्म के लिए लड़ता है तो वह दोनों ही दशा में वीर कहलाता है,
चाहे वह जीत जाये या मर जाये। परंतु जब अधर्म के लिए लड़ता है तब वह जीतने के
बावजूद भी अत्याचारी ही कहलाता है और यदि वह हार जाये तो लोग कहते हैं उसे
उसके कर्मों का दण्ड मिल गया। इससे हमें यह सीख मिलती है कि अत्याचार व वीरता
में भेद होता है। अत्याचार के परिणाम से उपयश मिलता है चाहे उसे कितनी ही वीरता
से क्यूं नहीं लड़ा गया हो।
इन दिनों हम रामायण धारावाहिक देख रहे हैं। अगर आप किसी कारण से यह नहीं देख पाए हो तो बहुत ही संक्षिप्त शब्दों में आज के इस धारावाहिक से जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण दृश्य-सूत्र को संक्षिप्त में इस प्रकार समझा जा सकता है:
दृश्य संख्या 1: ईश्वर सर्वोपरि है।
इस दृश्य में रावण के ससुर मायासुर रावण को समझाते हैं। मायासुर कहते हैं कि शिव, ब्रह्मा व समस्त देवतागण राम के पक्ष में हैं। यह बात सुनकर रावण स्वयं को त्रिलोक विजेता बतलाता है। इस पर मायासुर कहते हैं रावण तुम त्रिलोक विजेता हो पर राम त्रिलोक रचयिता है। रावण इस बात का उपहास करते हैं। इस प्रकार अपने ससुर मायासुर के काफी समझाने के बाद भी संधि की शर्त के अनुसार आखिरी रात रावण उनकी सलाह को ठुकरा देता है। इससे हमें यह सीखने को मिलता है कि इस संसार में बहुत सी सफलताएं मिल जाने के पश्चात भी इस संसार के रचयिता को ही सर्वोपरि समझना चाहिए। जब ईश्वर को सर्वोपरि समझते हैं तो हम अहंकार के भाव से बच जाते हैं तथा कृतज्ञता के भाव में रहने लगते हैं।
दृश्य संख्या 2: अहंकार व स्वाभिमान में बहुत थोड़ा भेद है।
इस दृश्य में मंदोदरी रावण को संधि के आखिरी रात समझाती है। मंदोदरी कहती है सती नारी का मन बहुत ही कोमल होता है, परंतु सत्य धर्म के पालन में वह हिमालय के समान अविचल हो जाती है। नारी का हृदय बड़े से बड़े प्रलोभन में भी विचलित नहीं होता और इस प्रकार मंदोदरी रावण से विनती करती है कि वह अनावश्यक युद्ध में लंका को ना झोंके। वह यह भी कहती है कि नाथ अगर तुम चाहो तो दानवों की मृत्यु को आज की रात सही निर्णय लेकर जीवन की ओर मोड़ सकते हो। रावण मंदोदरी का उपहास करता है और वह अपनी क्षमताओं का बखान करता है। रावण का कहना है कि नवग्रह के सभी देव उनकी सेवा में खड़े रहते हैं। वह जिन्हें राम कह रही है वह तुच्छ वनवासी है। अंत में सभी प्रयास करने के बाद मंदोदरी रावण को अहंकार रूपी पट्टी जो आंखों से हटाने को कहती है। रावण कहते हैं कि यह मेरा अहंकार नहीं बल्कि यह मेरा स्वाभिमान है। इस प्रकार हम यह देखते हैं कि स्वाभिमान धीरे-धीरे कब अहंकार बन जाता है, इंसान को पता ही नहीं चलता है। जब किसी स्वाभिमान में कृतज्ञता ना हो तो यह हमें यह समझ लेना चाहिए कि अब यह अहंकार बन गया है।
दृश्य संख्या 3: अंत में विजय धर्म की ही होती है।
आज संधि प्रस्ताव की आखिरी रात है रावण की मां कैकसी रावण को समझाने के लिए आती है। कैकसी कहती है तुम्हारे दोनों भाई खर, दूषण और बहुत से राक्षस युद्ध में मारे जा चुके हैं। तुमने नाना की बातों को ना मानकर भी अच्छा नहीं किया। कैकसी कहती हैं कि रावण बेटे मैंने तुम्हें जन्म दिया है और मैं तुम्हारा शुभ चाहती हूं। रावण कहते हैं मैं नादान नहीं हूं, आपने मुझे जन्म जरूर दिया परंतु मैनें अपना भूत और भविष्य स्वयं तय किया है। कैकसी रावण को समझाती है कि दानव अधर्म के साथ हैं व देवता धर्म के साथ हैं और अंत में विजय धर्म के साथ रहने वालों की ही होती है। इतना समझाने के बाद कैकसी हटधर्मी रावण को युद्ध ना करने की सलाह देती है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि अंत में देर से ही भले पर जीत सत्य की ही होती है।
एपिसोड-५ (मकराक्ष वध व राम-रावण युद्ध)
इन दिनों हम रामायण धारावाहिक देख रहे हैं। अगर आप किसी कारण से यह नहीं देख पाए हो तो बहुत ही संक्षिप्त शब्दों में आज के इस धारावाहिक से जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण दृश्य-सूत्र को संक्षिप्त में इस प्रकार समझा जा सकता है:
दृश्य संख्या 1: दुश्मन की वीरता का भी सम्मान करें।
सेनापति दुर्मुख की मृत्यु के पश्चात रावण के भाई खर का पुत्र मकराक्ष आता है। अपने पिता खर की मृत्यु का बदला लेने के लिए युद्ध में जाने के प्रस्ताव रखता है। रावण इसके लिए अपनी सहमति दे देते हैं। युद्ध भूमि में मकराक्ष पहुंचकर राम को युद्ध के लिए ललकारते हैं। राम युद्ध भूमि में स्वयं आते हैं तथा मकराक्ष का परिचय तथा अपने पिता की मृत्यु के लिए माता के संकल्प को पूरा करने के लिए की गई प्रतिज्ञा को बड़े सम्मान की नजर से देखते हैं। लक्ष्मण मकराक्ष का उपहास करते हैं तथा यह कहते हैं कि यह तो कुछ ऐसे हुआ जैसे कोई चूहा शेर की गुफा के बाहर खड़ा होकर शेर को युद्ध के लिए ललकारे। इस पर राम कहते हैं कि वीरों का उपहास करना वीरों का काम नहीं होता। इससे हमें यह सीख मिलती है कि दुश्मन की हर अच्छाई का भी सम्मान करना चाहिए। यही एक सच्चे वीर का गुण होता है। अच्छाई का सम्मान करने से स्वयं में भी अच्छाई बढऩे लगती है।
दृश्य संख्या 2: भक्त व ज्ञानी में भेद है।
इस दृश्य में अपने भाई के बेटे मकराक्ष की युद्ध में मृत्यु के पश्चात रावण विचलित हो जाता है। रावण स्वयं युद्ध भूमि में आता है। युद्ध भूमि में आने के पश्चात रावण राम से कहता है कि तुम मूर्ख वानरों को अपनी वाक पटुता से बरगला सकते हो, क्योंकि वे अज्ञानी हैं इस पर राम एक बहुत सुंदर जवाब देते हैं। राम कहते हैं कि भक्त व ज्ञानी में यही अंतर है एक ओर भक्त जहां सच्चा और सरल होता है भले ही वह अज्ञानी ही क्यों ना हो दूसरी ओर ज्ञानी अच्छा वह बुरा हो सकता है। ज्ञानी दुराचारी भी हो सकता है। इस समय राम रावण से यह भी कहते हैं की युद्ध लडऩे के लिए सिर्फ पाशविक शक्तियों से ही काम नहीं चलता बल्कि धार्मिक व आत्मिक शिक्षा की भी जरूरत होती है। इससे हमें यह समझ मिलती है कि ज्ञानी से भक्त बड़ा है क्योंकि भक्त सरल होता है और उसे समझाना आसान होता है। जबकि ज्ञानी दुराचारी भी हो सकता है। गीता में भी भगवान कृष्ण भक्ति मार्ग को सर्वश्रेष्ठ व सरल मार्ग बतलाते हैं जहां ज्ञानी बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं, वही भक्त अपने कोमल हृदय व सरल स्वभाव से ही ईश्वर को पा लेते हैं।
दृश्य संख्या 3 : पहली जीत और पहली हार दोनों ही अंतिम नहीं हुआ करती।
इस दृश्य में रावण हताश व निहत्थे होकर वापस महल में लौटते हैं। निहत्थे व हताश रावण के सामने उनके नाना आते हैं, रावण के नाना रावण से कहते हैं कि मैं अब तुम्हें युद्ध ना करने की सलाह नहीं दूंगा। अब मैं तुम्हें यह कहूंगा कि तुम्हें पूरी क्षमता के साथ युद्ध करना चाहिए। वह रावण को प्रेरित करते हैं और रावण से कहते हैं कि पहली हार अंतिम हार नहीं हुआ करती है। हार और जीत के बीच में कई फासले होते हैं। इस दृश्य से हमें यह सीखने को मिलता है कि एक बार निर्णय लिए जाने के पश्चात उस पर स्थिर रहना चाहिए तथा निर्णय लेने के पश्चात अगर प्रारंभिक अवस्था में हार भी मिले तो उसे अंतिम हार नहीं समझना चाहिए। लगातार प्रयास करते रहना चाहिए। क्योंकि बहुत बार प्रारंभिक हार होने के बावजूद भी अंत में विजय होती है, दूसरी ओर कई बार प्रारंभ में विजय होने के बाद भी अंत में हार हो जाती है।
एपिसोड-६ (कुंभकरण रावण एवं कुंभकर्ण विभीषण संवाद)
इन दिनों हम रामायण धारावाहिक देख रहे हैं। अगर आप किसी कारण से यह नहीं देख पाए हो तो बहुत ही संक्षिप्त शब्दों में आज के इस धारावाहिक से जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण दृश्य-सूत्र को संक्षिप्त में इस प्रकार समझा जा सकता है:
दृश्य संख्या 1: कर्म व अर्थ, धर्म के अधीन होने चाहिए।
इस दृश्य में कुंभकरण को नींद से जगाया जाता है और कुंभकरण नींद से जागने के बाद रावण के समक्ष प्रस्तुत होते हैं। कुंभकरण रावण से कहते हैं कि आप नारायण के रूप में श्रीराम को नहीं समझ पाए, रावण क्रोधित होते हैं। वे कहते हैं शत्रु को श्री से सम्बोधित मत करो। कुंभकरण इसका जवाब देते हैं कि आंख बंद करने से सूर्य का प्रकाश कम नहीं हो जाता उन्हें श्रीराम ही कहना होगा। इसके आगे कुंभकरण कहते हैं, अर्थ व कर्म जब धर्म के विपरीत हो वहां कर्म और अर्थ को त्याग देना चाहिए। वे आगे कहते हैं सुबह का समय धर्म का होता है, दोपहर का समय अर्थ का होता है और रात्रि का समय काम का होता है। इस प्रकार वे भली-भांति रावण को यह समझाते हैं कि धर्म सर्वोपरि है। अर्थ एवं कामनाएं धर्म सम्मत होनी चाहिए। इस दृश्य से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि सुबह का कार्य अच्छे विचारों का होना चाहिए, धार्मिक कार्यों का होना चाहिए दोपहर में अर्थोपार्जन पर ध्यान दिया जाना चाहिए तथा उसके पश्चात कामनाओं की पूर्ति पर ध्यान दिया जाना चाहिए। शास्त्रों में चार पुरुषार्थ बताए गए हैं धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थ में सबसे महत्वपूर्ण पुरुषार्थ है धर्म। धर्म का अर्थ है सही व गलत का विवेक। जब अर्थ उपार्जन व कामनाएं धर्म के अधीन होती हैं तब वह श्रेष्ठ होती है और इसी के द्वारा चौथे व अंतिम पुरुषार्थ के रूप में मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
दृश्य संख्या 2: राजा को चापलूस मंत्रियों से दूर रहना चाहिए।
इस दृश्य में रावण को कुंभकरण पर क्रोध करते हुए दिखाया जाता है रावण कुंभकरण से कहते हैं यह समय शास्त्र संबंधित बातें करने का नहीं है। इसके आगे रावण क्रोधित होकर कुंभकरण से कहते हैं अगर तुम युद्ध में भाग नहीं लेना चाहो तो उन्हें वापस जाकर सो जाओ मैं स्वयं युद्ध कर लूंगा। इसके जवाब में कुंभकर्ण रावण से कहते हैं कि छोटे भाई के रहते हुए कभी बड़े भाई युद्ध में नहीं जाते। वे कहते हैं जो बातें मैंने कही हैं वह छोटे भाई होने के कारण मेरा अधिकार भी था और यह मेरा कर्तव्य भी था। इसके आगे वह यह भी कहते हैं कि छोटा भाई मित्र भी है और सेवक भी है। अपने बड़े भाई के लिए तो मैं मरने को भी तैयार हूं। कुंभकरण को आज रावण की यह स्थिति देखकर बड़ा दुख भी हो रहा है और एक छोटे भाई होने के नाते ऐसी परिस्थिति में जो कर्तव्य है उसको पालन करने की मर्यादा भी महसूस हो रही है। अंत में कुंभकरण कहते हैं कि जो मंत्री राजा की हां में हां मिलाते हैं वे मंत्री कभी राजा का भला नहीं कर सकते। इस दृश्य से हमें यह सीख मिलती है कि राजा को अपने दरबार में किए जाने वाले सभी कार्यों में सलाहकारों की मदद लेनी चाहिए तथा ऐसे मंत्रियों से हमेशा दूर रहना चाहिए जो राजा की हां में हां मिलाते हैं और राजा को सही निर्णय लेने नहीं देते।
दृश्य संख्या 3: क्या धर्म की परिभाषा देश व काल के अनुसार बदलती है?
इस दृश्य में कुंभकरण युद्ध भूमि पर आते हैं। कुंभकरण का विशाल शरीर को देखकर राम की सेना में हाहाकार मच जाता है। राम सभी से सलाह करते हैं तथा यह निश्चय किया जाता है कि विभीषण कुंभकरण के पास जाकर उन्हें समझाएंगे। युद्ध भूमि में पहुंचकर विभीषण कुंभकरण को प्रणाम करते हैं। कुंभकरण अपने भाई विभीषण से मिलकर प्रसन्न होते हैं पर थोड़ी देर बाद वह विभीषण से रुष्ट होते हुए कहते हैं कि तुमने अपने बड़े भाई का साथ ना देकर राम की शरण में गए। चाहे जैसी भी स्थिति रही हो तुम्हें रावण का ही साथ देना चाहिए था। धर्म की कोई निश्चित परिभाषा नहीं होती। धर्म की व्याख्या देश काल और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है। इसके उत्तर में विभीषण कहते हैं, सत्य सदा एक ही होता है सत्य ही धर्म होता है, सत्य ही शाश्वत होता है। इस समय कुंभकरण कहते हैं ऐसा समय आता है जब आदमी धर्म संकट में फंस जाता है और उस समय यह निश्चित करना बहुत ही कठिन हो जाता है कि प्राणी का क्या धर्म है और क्या कर्तव्य है। ऐसे ही अवसर पर प्राणी अपने संस्कारों के अनुसार ही अपने धर्म का निश्चय करता है। इस संवाद से हमें यह सीखने को मिलता है की धर्म की परिभाषा बहुत ही गूढ़ है तथा वह कभी भी बदलती नहीं है अधर्म प्रारंभ से अंत तक अधर्म ही रहता है और धर्म प्रारंभ से अंत तक धर्म ही रहता है। रिश्तों से अधिक महत्व धर्म को दिया जाना चाहिए क्योंकि अंत में विजय धर्म की ही होती है। शास्त्रों में बताए गए चारों पुरुषार्थ में धर्म का प्रतीक शेर को समझा गया है, उसे किसी की परिचय की आवश्यकता नहीं होती धर्म के अधीन ही अर्थ व काम शोभायमान होते हैं।
This morning we watched the Ramayana episode. If you have not been able to watch it for some reason, then in very brief words, I keep in brief the 3 important scenes related to this serial from today’s life:
First view- Religion and Temptation:
We saw that the messenger was sent by Ravana to meet Sugriva. Various temptations were given to Sugriva by the messenger. In the messege, Ravana talked about the temptation of various material pleasures. This time there was a very good answer by Sugriva. Sugriva said should I forget the promise given to my brother Bali at the time of death. Apart from this, Sugriva gave more importance to religion than material happiness. Thus Sugriva rejected the temptation of Ravana. In today’s environment, we get to learn from this that we too should not get into external dazzle and temptation because spiritual happiness is the greatest happiness. Spiritual happiness is attained only by walking on the path of religion.
Second view – advice and thinking:
Ram and the entire vanar sena reached south near the beach, seeing the vast ocean in front, Ram Lakshman and the entire vanar sena fall into dilemma. At such a time, Vibhishan advises Rama and Lakshmana to ask for a way from the sea. Laxman likes this advice but Lakshman speaks about being a Suryavanshi, saying that it is the job of cowards to ask. On this, Rama expresses his disagreement and asks him to pray to Samudra Dev. This teaches us that any task should be done with humility. Work done in a spirit of charge and authority is not right. Ram and the entire Vanar Sena plead with Samudra Dev for 3 days politely.
Third view – Maryada, Panchatattva and God:
Rama prays to the Samudra Dev while remaining unharmed for three days. Rama gets angry when Samudra Dev does not give the way. Ram gets angry and manages Brahmastra. Fearful, the sea god appears and apologizes. The compassionate Lord Rama forgives the Samudra Dev because the Samudra Dev explains the limitations of Panchatatva and the Samudra Dev explains the basic nature of water. Rama immediately understands the dignity of water as the Panchatatva. Further, the water god architect Rama is aware of Nal’s abilities. This place later became famous as Rameshwar Dham. From this scene, we learn that even after insisting on humility, anger becomes necessary even if no one understands it. But anger must also be controlled. Rama has complete control over his anger. Apart from this, it is also known that an apology should be sought immediately upon realizing its mistake.
Dr. Sanjay Biyani
Motivational Speaker, Counselor & Educationist
आज सुबह हमने रामायण एपिसोड देखा। अगर आप किसी कारण से यह नहीं देख पाए हो तो बहुत ही संक्षिप्त शदों में आज के इस धारावाहिक से जीवन से संबंधित जो 3 महत्वपूर्ण दृश्य-सूत्र को संक्षिप्त में इस प्रकार रखता हूँ :
पहला दृश्य- धर्म व प्रलोभनः
हमने यह देखा कि रावण द्वारा सुग्रीव से मिलने के लिए दूत भेजा गया। दूत द्वारा सुग्रीव को विभिन्न तरह के प्रलोभन दिए गए। दूत में विभिन्न भौतिक सुख के रावण द्वारा प्रलोभन दिए जाने की बात कही। इस समय सुग्रीव द्वारा बहुत ही अच्छा जवाब दिया गया। सुग्रीव ने कहा या मैं मृत्यु के समय अपने भाई बाली को दिए गए वचन को भूल जाऊं। इसके अलावा सुग्रीव ने भौतिक सुख से अधिक महत्व धर्म को दिया। इस प्रकार सुग्रीव ने रावण के प्रलोभन को नकार दिया। आज के परिवेश में इससे हमें यह सीखने को मिलता है कि हमें भी बाहरी चकाचौंध व प्रलोभन में नहीं आना चाहिए योंकि आत्मिक सुख ही सबसे बड़ा सुख है। आत्मिक सुख की प्राप्ति धर्म के रास्ते पर चलने से ही प्राप्त होती है।
दूसरा दृश्य – सलाह व सोचः
राम व संपूर्ण वानर सेना दक्षिण में समुद्र तट के समीप पहुंच गई, विशाल सागर को सामने देखकर राम लक्ष्मण व संपूर्ण वानर सेना सोच में पड़ जाती है। ऐसे समय विभीषण राम अौर लक्ष्मण को समुद्र से रास्ता मांगने की सलाह देते हैं। लक्ष्मण को यह सलाह पसंद तो आती है परंतु लक्ष्मण सूर्यवंशी होने की बात कहकर यह बोलते हैं कि मांगना कायरों का काम होता है। इस पर राम अपनी असहमति व्यक्त करते हुए समुद्र देव से प्रार्थना करने की बात कहते हैं। इससे हमें यह सीख मिलती है कि कोई भी कार्य विनम्रता वह आग्रह से किया जाना चाहिए। आवेश व अधिकार की भावना से किया गया कार्य सही नहीं होता। राम व संपूर्ण वानर सेना समुद्र देव से 3 दिन तक विनम्रता से आग्रह करती है।
तीसरा दृश्य – मर्यादा, पंचतत्व एवं ईश्वरः
राम द्वारा तीन दिवस तक निराहार रहकर समुद्र देव से प्रार्थना की जाती है। समुद्र देव द्वारा रास्ता नहीं दिए जाने पर राम क्रोधित होते हैं। राम क्रोधित होकर ब्रह्मास्त्र का संधान करते हैं। भयभीत होकर समुद्र देव प्रकट होते हैं तथा क्षमा याचना करते हैं। करुणामय भगवान राम समुद्र देव को क्षमा कर देते हैं योंकि समुद्र देव पंचतत्व की मर्यादाओं को बतलाते हैं तथा समुद्र देव जल के मूल स्वभाव के बारे में समझाते हैं। राम तुरंत पंचतत्व के रूप में जल की मर्यादा को समझ जाते हैं। इसके आगे जल देव वास्तुविद् नल नील की क्षमताओं के बारे में राम को अवगत करवाते हैं। यही स्थान आगे जाकर रामेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस दृश्य से हमें यह सीख मिलती है कि विनम्रता आग्रह के पश्चात भी अगर कोई ना समझते तो क्रोध भी आवश्यक हो जाता है। लेकिन क्रोध भी नियंत्रित होना चाहिए। राम का अपने क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण है। इसके अतिरिक्त यह भी विदित होता है कि अपनी गलती का आभास होने पर तुरंत क्षमा मांग ली जानी चाहिए।
डॉ. संजय बियानी
मोटिवेशनल स्पीकर, काउंसलर एवं शिक्षाविद्
अक्सर यह बात होती है कि स्मार्टफोन्स आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एंव रोबोटिक्स के प्रयोग समाज के हित मे हैं अथवा नहीं? अगर हम एक नजर प्राचीन समय मे ड़ालें तो पाते हैं कि जहां मशीनो ने मनुष्य के द्वारा किए जा रहे शारिरिक श्रम को कम कर इंसान को बौधिक स्तर के विकास के लिए अवसर प्रदान किए हैं।वरना आज भी इंसान शारिरिक श्रम,मजदूरी,खेती इत्यादि करते नजर आते।इसी तरह कम्यटर के आ जाने के पश्चात आदमी को गणना एंव डिजाइनिंग के कार्यों मे आसानी हुई।जिसकी वजह से इंसान बौधिक स्तर के नये आयामो की ओर बढ़ा।वर्तमान मे इसान को निर्णय लेने मे साफ्टवेयर्स और रोबोट्स काफी मदद करने लगे हैं। इस कारण इस बात की संभावना बढ़ गई है कि मनुष्य बौधिक स्तर के नये नये आयमों की पुन: खोज कर सकेगा।जैसा कि हम जानते हैं कि,हम हमारे अंदर व्याप्त संभावनाओं मे से बहुत ही कम संभावनाओं को जान पाए हैं तथा इसका उपयोग कर पाए हैं।स्मार्टफोन्स,आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और रोबोटिक्स तकनीकि के विकास से यह संभव हो पाएगा कि मनुष्य अपने अंदर छुपी हुई नई संभावनाओं की खोज कर सके।
दूसरी ओर बहुत से लोग प्राय: यह कहते नजर आते हैं कि इन सब तकनीको की वजह से मनुष्य लाचार हो जाएगा तथा उसका स्थान राबोट्स ले लेंगे।वास्तव मे इन मशीनी विकास के कारण जो समय बचेगा उसका उपयोग कर इंसानी संभावनाओं को तराशा जा सकेगा।
एक और महत्वपुर्ण बात यह है कि तकनीकी प्रगति तभी इंसानियत के लिए वास्तविक वरदान साबित होगी जब इंसान इन सबसे पहले स्वयं की खोज करने की आदत ड़ाल ले।जब इंसान स्वयं को तथा अपने जीवन के उद्देश्य को समझ लेगा तभी वह अपने द्वारा निर्मित मशीनों का इस्तेमाल कर अपने जीवन को उन्नत बनाकर अपने अंदर छिपी अपने अंदर छिपी अपार संभावनाओं को प्राप्त कर सकेगा।
इन दिनो करोना वायरस को लेकर पूरे विश्व मे भय व्याप्त हो गया है। इस भय के कारण शेयर बाजारों मे भारी गिरावट आ गई है।इस भय के कारण जो मानसिक तनाव व्याप्त हुआ है उससे निश्चित ही मनुष्य के स्वास्थय पर भी नकारात्मक असर पड़ा है।मनुष्य पर बाहरी वस्तुओं के लिए आकर्षण अगर इस कदर हावी है कि वह अपने आंतरिक स्वरूप को ही नही पहचान पा रहा।यदि हम ठीक से इन सबका कारण खोजें तो यही पाएंगे कि इसके मूल मे मनुष्य का ही स्वार्थ छिपा हुआ है।करोना वायरस फैलने का प्रमुख कारण प्रकृति का अनावश्यक विदोहन व स्वार्थ की भावना ही रही है।चीन के वुहान शहर मे स्वार्थ की भावना से किए गए प्रयोग न सिर्फ चीन के लिए भयंकर साबित हुआ है बल्कि पुरे विश्व के लिए के मानवता पर एक संकट बन गया है।
आइए मानव इतिहास के सर्वोत्म समय मे रहने का गौरव महसूस करें तथा प्रयास कर स्वयं की खोज करें ताकि स्वार्थ से परमार्थ के पथ पर चल सकें ।
सस्नेह ,प्रेम और सम्मान के साथ..
डॉ. संजय बियानी
15 मार्च 2020
सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट यानि नागरिकता संशोधन कानून, 12 दिसंबर 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी मिलने के बाद यह कानून अमल में आया। पूर्व में धार्मिक प्रताडऩा के कारण जान बचाकर तीन पड़ोसी देशों में भयावह जीवन जीने को मजबूर होने के बाद भारत आए लोगों को यह कानून राहत देता है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के 6 धर्मों को मानने वाले शरणार्थियों को अब भारत की नागरिकता मिल सकेगी। इनमें हिंदू, सिक्ख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई मत के मानने वाले शामिल हैं। 31 दिसंबर 2014 से पहले आने वाले शरणार्थियों को ही इस कानून का लाभ मिलेगा। इसके पहले किसी व्यक्ति को नागरिकता या तो जन्म से मिलती थी या 12 साल तक भारत मे रहने के बाद ही कोई नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता था, लेकिन इस कानून में इस प्रावधान को 6 साल कर दिया गया है। इन तीनो देशों के अलावा किसी भी अन्य देश से आए लोगो पर यह कानून लागू नहीं होगा।
8 अप्रैल 1950 को नई दिल्ली में भारत और पाकिस्तान के अल्पसंख्यको की सुरक्षा और अधिकारो के संबंध मे नेहरू-लियाकत समझौता हुआ था जिसमें दोनों देशों के अल्पसंख्यको को सम्मान से जीने का हक देने की बात प्रमुखता से की गई थी, पर पाकिस्तान ने अपनी इस प्रतिबद्धता का कभी सम्मान नही किया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि समझौते के 6 महीने बाद ही वहां के अल्पसंख्यक समुदाय के केन्द्रीय मंत्री जोगेन्द्र नाथ मंड़ल को इस्तीफा देकर भारत आना पड़ा था।
इस कानून का बड़े पैमाने पर विरोध भी हो रहा है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को शामिल नही किए जाने को लेकर कई संगठन इसे भारत के संविधान के खिलाफ बता रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में खासकर असम में कानून का विरोध करने वालो का तर्क है कि इसके जरिए भारत मे हजारों अवैध प्रवासी नागरिक बन जाएंगे, जिससे उनके स्थानीय पहचान पर असर पड़ेगा। विभिन्न राजनीतिक दलों, संगठनों द्वारा इस कानून को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी गई है।
एक तर्क यह भी है कि जब भूटान के ईसाई, म्यांमार के रोहिंग्या, चीन के उइगर मुस्लिमों के साथ, पाकिस्तान में भी शिया, अहमदिया और कादयानी धार्मिक प्रताडऩा झेल रहे हैं तो सिर्फ तीन देशों के 6 समुदायों के लोगों के लिए ही यह खास कानून क्यों? जब इस कानून से 20 प्रतिशत आबादी पर प्रभाव पडऩा है तब इसके लिए संवाद किए जाने की जरूरत थी। सरकार कुछ लोगों का दिल नहीं जीत पाई। पहले दो-तीन महीने में आम राय बनाने की कोशिश करनी चाहिए थी। इससे मुस्लिम या किसी अन्य के विरोधी होने का संशय खत्म हो जाता।
सरकार ने बार-बार कहा है कि यह कानून न तो भारतीय नागरिकों के बारे में है और ना ही भारतीय मुसलमानों के बारे में। यह किसी भी तरीके से किसी भी भारतीय के नागरिकता को प्रभावी नहीं करता। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह का तर्क है कि राजनीतिक कारणों से पलायन किए गए लोगों और धार्मिक कारणों से सताए गए लोगों की आपस मे तुलना नहीं की जा सकती। अवैध तरीके से आए घुसपैठियों और सम्मान से जीने की ललक में आए इन तीन देशों के अल्पसंख्यकों मे फर्क करना जरूरी है।
देर से सही पर इन लोगों पर भारत के द्वारा की गई थोड़ी सी करूणा है इससे ज्यादा कुछ नहीं।
प्रेम, स्नेह व सम्मान के साथ…
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